दिल्ली

मिनरल टैक्स पर 9 जजों की बेंच ने कौन सा ऐतिहासिक फैसला दिया, कैसे मालामाल हो सकते हैं ये राज्य!

नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इतिहास रच दिया है। खनिज टैक्स यानी मिनिरल टैक्स को लेकर चल रहे राज्य और केंद्र सरकार के मतभेद वाले केस में अपना ऐतिहासिक फैसला सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट में मिनरल टैक्स पर सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई में 9 जजों की बेंच में पहले मैराथन सुनवाई चली थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट में ये ऐतिहासिक केस तो चल ही रहा था। इसमें फैसला भी ऐतिहासिक ही हुआ है क्योंकि मामले में बेंच ने 8 के अनुपात में 1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया है। यानी की मिनरल टैक्स को लेकर इस फैसले में आठ जजों की राय एक रही। बस एक जज जस्टिस बीवी नागरत्ना का मत फैसले से असहमत रहा।
8 जजों ने क्या फैसला सुनाया
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति राज्यों में निहित है और खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर नहीं है। पीठ ने कहा कि संसद के पास संविधान की सूची एक की प्रविष्टि 54 के तहत खनिज संपदा अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति नहीं है। इस फैसले में कहा गया कि हालांकि संसद अभी भी खनिज संपदा पर कर लगाने के राज्यों के अधिकारों की सीमा निर्धारित करने के लिए कानून बना सकती है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने अपने और पीठ के सात न्यायाधीशों के फैसले को पढ़ा जिसमें कहा गया कि संविधान की दूसरी सूची की प्रविष्टि 50 के अंतर्गत संसद को खनिज संपदा अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति नहीं है। शुरू में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीठ ने दो अलग-अलग फैसले दिए हैं और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने असहमति वाला फैसला दिया है।
जस्टिस नागरत्ना ने जताई असहमति
सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण फैसले में कहा कि यदि खनिज संसाधनों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को दे दिया गया तो इससे संघीय व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि वे आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे और खनिज विकास खतरे में पड़ जाएगा। जस्टिस नागरत्ना ने 193 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा कि खनिजों पर देय रॉयल्टी कर की प्रकृति की है, न कि यह केवल एक संविदात्मक भुगतान है। उन्होंने कहा कि यदि रॉयल्टी को कर नहीं माना जाता है और इसे खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) (एमएमडीआर) अधिनियम, 1957 के प्रावधानों के अंतर्गत शामिल किया जाता है, तो इसका अर्थ यह होगा कि प्रविष्टि 54-सूची एक और एमएमडीआर अधिनियम, 1957 की धारा 2 में की गई घोषणा के बावजूद, राज्यों द्वारा खनन पट्टा धारक पर रॉयल्टी के भुगतान के अतिरिक्त खनिज अधिकारों पर कर लगाया जा सकता है।
सबसे बड़ा सवाल है कि विभिन्न राज्य सरकारें जब अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करने लगेंगी, तब उसका असर व्यवहार में किस तरह से सामने आएगा। इसका ठीक-ठीक अंदाजा तभी होगा, जब राज्य सरकारों के फैसले सामने आएंगे और लागू होने लगेगे। फिर भी इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि विभिन्न राज्य अपनी जरूरतों के मुताबिक जो अतिरिक्त टैक्स लगाएंगे उससे तमाम खनिज पदार्थों की कीमतें बढ़ेगी और इसका सीधा असर उन सभी उत्पादों की लागत पर पड़ेगा, जिनके उत्पादन में ये खनिज पदार्थ कच्चा माल के रूप में इस्तेमाल होते हैं।

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