देहरादून

एक जून से पर्यटकों के लिए खुलेगी फूलों की घाटी

उत्तराखंड : 19 मई 2024 ,देहरादून। चमोली जनपद स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी पर्यटकों के लिए इस वर्ष 1 जून से खोल दी जाएगी। नंदा देवी राष्ट्रीय वन प्रभाग इन दिनों घाटी में पर्यटकों के स्वागत की तैयारियों में जुटा है। पर्यटकों व ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए फूलों की घाटी काफी मुफीद होती है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर घाटी में दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियां पाई जाती हैं। यहां जैव विविधता का खजाना है। 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं। उप वन संरक्षक बीबी मार्तोलिया ने बताया, घाटी में पहला दल घांघरिया से एक जून को रवाना किया जाएगा। दल को घाटी में ट्रैक के बाद उसी दिन वापस आना होता है। बताया, यहां के लोगों के लिए 200 रुपये और विदेशी नागरिकों के लिए 800 रुपये ईको ट्रैक शुल्क निर्धारित है। घांघरिया में टूरिस्ट गाइड की भी सुविधा उपलब्ध रहेगी।
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक फूलों की घाटी का नाम है। यह भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में है। फूलों की घाटी विश्व संगठन यूनेस्को द्वारा सन् 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नन्दा देवी अभयारण्य नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है। हिमालय क्षेत्र पिंडर घाटी अथवा पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है। रामायण काल में हनुमान संजीवनी बूटी की खोज में इसी घाटी में पधारे थे। इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था, जो संंयोग से 1931 में अपने कामेट पर्वत के अभियान से लौट रहे थे। इसकी बेइंतहा खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ 1937 में इस घाटी में वापस आये और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब प्रकाशित करवायी।हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा हुआ और फूलों की 500 से अधिक प्रजातियों से सजा हुआ यह क्षेत्र बागवानी विशेषज्ञों या फूल प्रेमियों के लिए एक विश्व प्रसिद्ध स्थल बन गया। नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन जड़ी की छाल की पंखुडियों में रंग छिपे रहते हैं। यहाँ सामान्यतः पाये जाने वाले फूलों के पौधों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान प्रमुख हैं।

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