उत्तराखंडदेहरादूनशिक्षा

पहाड़ की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व!  प्रधानाध्यापिका 

 रा.प्रा.वि. जगतपुर, सहसरपुर देहरादून स्कूल में हरेला पर्व पर बच्चो ने रोपे पौधे!

 रा.प्रा.वि. जगतपुर, सहसरपुर देहरादून स्कूल में हरेला पर्व पर बच्चो ने रोपे पौधे!

देहरादून/उत्तराखण्ड: 17 JULY .. 2023,: राजधानी से बता दे कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनभावनाओं का सम्मान करते हुए उत्तराखण्ड में हरेला पर्व के सार्वजनिक अवकाश 17 जुलाई को घोषित करने के निर्देश दिए हैं। वही जिसमें प्रदेश में हरेला का पर्व भी 17 जुलाई को मनाया मनाया जाएगां। वही, पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठन और समाजसेवी इस त्योहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं। वही इस देवभूमि में  हरेला पर्व वृक्षारोपण करने और पेड़-पौधों को सुरक्षित बड़ा करने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है।

वही इस हरेला पर्व के अवसर पर 17 जुलाई-2023, सोमवार को   विभिन्न शिक्षण संस्थानों व सामाजिक संस्थाओं ने हरेला पर्व को धूमधाम से मनाया।  इस मौके पर पछवादून के  राजकीय प्राथमिक विद्यालय,जगतपुर ढालवाला सहसरपुर ब्लाक देहरादून  में प्रधानाध्यापिका द्वारा हरेला पर्व मनाते हुए विद्यालय परिसर में नींबू, पपीता, आंवला, आम, अमरूद, बेल, ,जामुन  सहित सुंदर फूल पौधों का रोपण किया गया। हरेला पर्व पर स्कूल के बच्चो ने रोपे पौधे! वही इस  उत्तराखण्ड  की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। बता दे कि उत्तराखंड के पहाड़ की संस्कृति और इसके त्योहारों का प्रकृति के साथ खास रिश्ता है।

वही इस मौके पर विद्यालय की प्रधानाध्यापिका  श्रीमति पुष्पारानी ने कहा  हरियाली का प्रतीक हरेला लोकपर्व न सिर्फ एक पर्व है बल्कि एक ऐसा अभियान है, जिससे जुड़कर तमाम प्रदेशवासी बरसों से संस्कृति और पर्यावरण दोनों को संरक्षित करते आ रहे हैं। हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में। वही इस अवसर पर स्कूल की  प्रधानाध्यापिका एवं  सहित भोजनमाता  व स्कूल के सभी बच्चे/छात्र मौजूद रहे।

आज वही इस हरेला पर्व पर शिक्षकों व छात्रों ने पौधारोपण करते हुए पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया।  साथ ही हरेला पर्व पर स्कूल परिसर में विभिन्न प्रकार के फलदार पौधे रोपे गए। वही इसी के साथ विद्यालय की प्रधानाध्यापिका  श्रीमति पुष्पारानी नेछात्रो को बताया कि हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र माह में, दूसरा श्रावण माह में और तीसरा अश्विन माह में। यह हरियाली का प्रतीक हरेला लोकपर्व न सिर्फ एक पर्व है बल्कि एक ऐसा अभियान है, जिससे जुड़कर तमाम प्रदेशवासी बरसों से संस्कृति और पर्यावरण दोनों को संरक्षित करते आ रहे हैं।

साथ ही प्रधानाध्यापिका ने बच्चो को हरेला का महत्व संक्षेप में बताया कि श्रावण मास की संक्रांति के दिन मनाया जाने वाला लोक पर्व हरेला प्रकृति से जुड़ा हुआ है। सावन माह लगने से नौ दिन पूर्व आषाढ़ माह में पांच अथवा सात अनाजों को मिलाकर छोटी छोटी टोकरियों में बोया जाता है। सूर्य की रोशनी से बचाकर घर में मंदिर के पास टोकरियों का रखा जाता है। प्रतिदिन पानी देने के उपरांत दूसरे दिन से ही बीज अंकुरित होकर पीली पौधे बनने लगती है। दसवें दिन सावन माह की संक्रांति को काट कर सर्वप्रथम देवताओं को और उसके बाद घर के प्रत्येक सदस्यों के सिर में शुभाशीष वचनों के साथ रखा जाता है।

उत्तराखंड की संस्कृति में युवाओं और बुजुर्गों को जोड़ने वाला हरेला पर्व संस्कृति के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाता है। लोक पर्व हरेला सुख स्मृद्धि और हरियाली का प्रतीक है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button