पहले हम यह समझे कि उत्तराखंडी कौन हैं, उत्तराखंडी किसे माना जाए ?
गढ़वाली-कुमाऊनी की परिभाषा क्या है?

गढ़वाली-कुमाऊनी की परिभाषा क्या है? और किसे व्यक्ति को गढ़वाली-कुमाऊनी माना जाए। यह जानने से पहले हम यह समझे कि उत्तराखंडी कौन हैं, उत्तराखंडी किसे माना जाए ?
कानूनी परिभाषा: उत्तराखंड में 15 साल से रहने वाला, जिसके पास स्थाई निवास प्रमाणपत्र है, वो उत्तराखंडी है। इसे सभी को स्वीकारना ही होगा। हरिद्वार, उद्यमसिंह नगर आदि मैदानी क्षेत्रों में रह रहे लोगों का भी उत्तराखंड में उतना ही हक है जितना गढ़वाली, कुमाऊनी,जौनसारी, भोटिया आदि समुदाय का है।
अब सवाल आता है कि गढ़वाली-कुमाऊनी किसे माना जाए ? गढ़वाली-कुमाऊनी समुदाय अभी तक अपनी विशिष्ट पहचान को परिभाषित करने में जूझ रहे हैं। जब तक यह सवाल अनसुलझा है, पहाड़ की मूल समस्याओं का हल निकालना मुश्किल है।
इसको एक उदाहरण से समझे: हरियाणा में रहने वाले सभी लोग हरियाणवी हो सकते है, लेकिन जाट नहीं। राजस्थान में रहने वाले सभी लोग राजस्थानी हो सकते है लेकिन भील, गुर्जर या राजपूत नहीं। महाराष्ट में रहने वाले महाराष्ट्रीयन हो सकते है, लेकिन मराठी नहीं । हिमाचल में रहने वाले लोग हिमाचली हो सकते है किन्नौरा या लाहौली नहीं इसी तरह गढ़वाली कुमाऊनी सिर्फ एक क्षेत्र नहीं एक समुदाय का नाम है।
जौनसारी-भोटिया समुदाय ने दिखाया रास्ता। जौनसारी और भोटिया समुदाय अपनी पहचान को लेकर स्पष्टता हासिल कर चुके हैं। जौनसार क्षेत्र में: जिनके पास ट्राइब सर्टिफिकेट या शिल्पकार सर्टिफिकेट है और जिसकी कट-ऑफ 1950 है, वे जौनसारी कहलाते हैं।बाकी लोग, जो वहाँ रहते हैं, उन्हें उत्तराखंडी माना जाता है, जौनसारी नहीं। इस स्पष्टता ने उनकी संस्कृति,रोजगार, जल-जंगल-जमीन को बचाया है।
गढ़वाली-कुमाऊनी समुदायों के लिए भी ट्राइब स्टेटस सभी समस्याओं का समाधान है। उत्तराखण्ड में गढ़वाली कुमाऊनी समुदाय को ट्राइब स्टेटस और गढ़वाल कुमाऊ क्षेत्र पे 5वीं अनुसूची/जनजाति का दर्जा लागू हो।
देवी-देवताओं,पूर्वजों के जल,जंगल,जमीन पर अधिकार वापिस पाने हेतु उत्तराखंड में 5th Schedule/Tribe Status लागू करवाने के लिए सभी समस्याओं का समाधान है।