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देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मुद्दा सुर्खियों में…? सियासी खींचतान जारी !

उत्तराखण्ड: 02 JULY .. 2023,  नई दिल्ली में देश से सबसे पहले उत्तराखण्ड राज्य में नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करने के लिए जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई (सेनि) की अध्यक्षता ने  इस संबंध में घोषणा की। वही  कमेटी ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि ने अपनी रिपोर्ट तैयार करने से पहले राज्य के सभी वर्गों, धर्मों, राजनीतिक दलों से बातचीत करने का दावा किया है। कमेटी को समान नागरिक संहिता पर 20 लाख से ज्यादा सुझाव मिले हैं।  प्राप्त ताजा  मिडियिा रिपोर्ट के अनुसार UCC एक बार फिर चर्चा में है।  समान नागरिक संहिता पूरे देश में उत्तराखंड की पहल पर लागू होने जा रही है।   यूनिफॉर्म सिविल कोड विशेषज्ञ समिति अंतिम रूप देकर जल्द ही सरकार को सौंपने का ऐलान किया है। जल्द ही  उत्तराखंड में  समान नागरिक संहिता की ड्राफ्ट रिपोर्ट आने की उम्मीद है। वही  अंतिम बैठक 24 जून 2023 को दिल्ली में हुई थी ।

वही इसी के साथ चुनावी सरगर्मियों के साथ ही हाल के दिनों में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) का मुद्दा सुर्खियों में है। सबसे पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस कोड का मसौदा बनाने के लिए 27 मई 2022 को रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया था।   ये समिति राज्य के लोगों से जनसंवाद करते हुए राय ले रही है। वही इस पर  उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि UCC कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद इसे लागू करने पर विचार किया जाएगा। उन्होंने यूसीसी लागू करने को गौरव का क्षण बताया। धामी के बयान को देखते हुए माना जा रहा है कि राज्य जल्द ही समान नागरिक संहिता कानून लागू कर सकता है।

भारत में इस पर आम सहमति बनाने की जरूरत है।  .वही जानकारो की माने तो मुस्लिम वोट बैंक के नुकसान के डर से शुरू से कांग्रेस कभी खुलकर इसके पक्ष में नहीं बोलती है।  वही इस दौरान  कांग्रेस का कहना है कि सिर्फ राजनीतिक फायदे और ध्रुर्वीकरण के लिए बीजेपी इसे मुद्दा बनाती रही है।   कांग्रेस आरोप लगाती रही है कि जब-जब चुनाव का वक्त आता है।  बीजेपी इस मुद्दे को हवा देती है।  देश के एक बड़े वर्ग को लगता है कि 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले भारत में समान नागरिक संहिता लागू होने का रास्ता खुल सकता है। दरअसल  इस साल जहां-जहां भी विधान सभा चुनाव हुए हैं।  उन सभी राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) बड़ा चुनावी मुद्दा बन कर उभरा   2023 में भी 9 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक वहीं 2024 में केंद्र में सत्ता के लिए लोकसभा चुनाव होना है।  वही इस यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा पार्टी के गठन के समय से बीजेपी के एजेंडे में रहा है।  पिछले 8 साल से केंद्र में बीजेपी की अगुवाई में सरकार चल रही है।   ऐसे में बीजेपी समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर देश के लोगों का मन टटोल रही है।  भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रचार अभियान में इसे बड़े मुद्दे के तौर पर शामिल किया। अभी देश में गोवा अकेला राज्य है जहां समान नागरिक संहिता लागू है। ये पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 के नाम से मशहूर है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक गोवा के भारत में 1961 में विलय के बाद भी कोड वहां लागू रहा।  साथ ही बीजेपी शासित कुछ राज्यों में इस साल यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की पहल पर तेजी से काम हो रहा है।  सूत्रो के मुताबिक वहीं  गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्रभाई पटेल ने विधानसभा चुनाव से पहले यह दांव चला.  वही इस दौरान  बीजेपी शासित राज्यों में उत्तराखंड के बाद गुजरात दूसरा राज्य है।  जिसने UCC के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया है।   ऐसे तो भारत में लंबे वक्त से इस पर बहस हो रही है।  लेकिन पिछले 5 साल से देश का एक बड़ा तबका समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग कर रहा है।

बता दे कि सविंधान की माने तो उसमें संविधान के भाग चार में यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया गया है. संविधान के भाग 4 में अनु्छेद 36 से लेकर 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व को शामिल किया गया है। इसी हिस्से के अनुच्छेद 44 में नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रावधान है।  इसमें कहा गया है “राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।    वहीं संविधान के भाग 4 में जिन नीति निर्देशक तत्वों का जिक्र किया गया है, उसे लागू करना सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं है।  अब सवाल उठता है कि जब संविधान में इसका जिक्र है ही, तो आजादी के बाद इस पर कोई कानून क्यों नहीं बना।

दरअसल संविधान के भाग 3 में देश के हर नागरिक के लिए मूल अधिकार की व्यवस्था की गई है, जिसे लागू करना सरकार के लिए बाध्यकारी है।  संविधान निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. बीआर आंबेडकर भी समान नागरिक संहिता के समर्थन में थे। आंबेडकर का तर्क था कि देश में महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिहाज से धार्मिक आधार पर बने नियमों में सुधार बेहद जरूरी है। समान नागरिक संहिता के रास्ते में वोट बैंक की राजनीति एक बड़ी बाधा रही है।

जानकारो की माने तो भारत में  मुस्लिम नेताओं के भारी विरोध के कारण देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समान नागरिक संहिता पर आगे नहीं बढ़े।   हालांकि 1954-55 में भारी विरोध के बावजूद हिंदू कोड बिल लेकर आए।  हिंदू विवाह कानून 1955, हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण कानून 1956 और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता कानून 1956 लागू हुए।  अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का खुलकर विरोध करते आए ।  आजादी के बाद से ही मुस्लिम समाज इसे उनके निजी जीवन में दखल का मुद्दा मानता रहा है।  वही मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं।

वही  इस कोड के जरिए ही देश की सभी महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सकती है।  2014 में केंद्र में सत्ता हासिल करने के बाद बीजेपी संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के वादे को पूरा कर चुकी है।  अब उसके लिए तीन बड़े वादों में से सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा ही बचा है जिसे लागू करने का रास्ता बीजेपी तलाश रही है।

सूत्रो  के मुताबिक इस दौरान  ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है।   ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है।   वही इसी के साथ ही बोर्ड का तर्क है कि संविधान के अनुच्छेद 371 (A-J) में देश के आदिवासियों को अपनी संस्कृति के संरक्षण का अधिकार हासिल है।   अगर हर किसी के लिए समान कानून लागू किया जाएगा तो देश के अल्पसंख्यक समुदाय और आदिवासियों की संस्कृति पर असर पड़ेगा।

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