
उत्तराखंड: 26 सितंबर. 2025, शुक्रवार को देहरादून । जब तक हम कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं करते, तब तक कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी ध्येय के साथ जन्मा, राष्ट्र निर्माण में योगदान देना और मातृभूमि की सेवा करना। आज स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा संगठन है जिसे मुख्यतः संघ के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना विजयादशमी के दिन सन् 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के मार्गदर्शन में हुई थी, जो उस वर्ष 25 सितंबर को पड़ी थी। विजयादशमी का महत्व भारतीय मानस में प्राचीन काल से अंकित है। यह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की सेना द्वारा रावण पर विजय का प्रतीक है।
संघ का दर्शन अनुशासन, समर्पण, त्याग और संन्यास पर आधारित है। यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्रदान करता है, जो भारतीय दर्शन पर आधारित है। इस प्रकार का और इस पैमाने का कोई दूसरा संगठन विश्व में नहीं है। संघ ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं कृ इसे 1927 में ब्रिटिश शासन द्वारा तथा 1948, 1975 और 1992 में भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित भी किया गया। इन चुनौतियों के बावजूद संघ एक सशक्त संगठन बनकर उभरा है और राष्ट्रीय पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
इसके 50 से अधिक सहयोगी संगठन एवं अनुमानित 50 लाख से अधिक सदस्य हैं, जो भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में सक्रिय हैं। संघ एक गैर-राजनीतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जिसने भारतीय राजनीति को गहराई से प्रभावित किया है। भारत-पाकिस्तान विभाजन, जेपी आंदोलन, मंडल आयोग आंदोलन, बाबरी मस्जिद प्रकरण और राम मंदिर निर्माण जैसे सभी प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दों पर संघ ने अपनी स्पष्ट भूमिका निभाई है।
वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के अनुसार, संघ भारतीय युवाओं के चरित्र निर्माण पर कार्य कर रहा है। संघ का उद्देश्य भारतीय संस्कृति का संरक्षण करना और निःस्वार्थ भाव से मातृभूमि की सेवा करना है। उनका मानना है कि व्यक्ति और समाज का विकास साथ-साथ होना चाहिए, ताकि सामूहिक प्रगति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त हो। संघ व्यक्तित्व निर्माण के माध्यम से समाज और राष्ट्र निर्माण का कार्य करता है।
संन्यास और त्याग ही संघ की शक्ति, सामर्थ्य और अजेयता के मूल स्रोत हैं। स्वयंसेवक विविधता में एकता के सिद्धांत में विश्वास रखते हैं और राष्ट्रवाद को सर्वोच्च मानते हैं। प्रत्येक स्वयंसेवक के लिए राष्ट्र पहले है। संघ एक स्वावलंबी संगठन है, जो स्वयंसेवकों के स्वैच्छिक गुरू दक्षिणा के योगदान से चलता है। अधिकांश संगठनों के विपरीत, संघ किसी व्यक्ति या मिथकीय चरित्र की पूजा नहीं करता। इसके लिए भगवा ध्वज ही शाश्वत गुरु है। मनुष्य नश्वर और त्रुटिपूर्ण हो सकता है, किंतु ध्वज सत्य की तरह पवित्र है। मेरा भगवा ध्वज को नमन।
संघ किसी एक क्षेत्र, जाति या समुदाय तक सीमित नहीं बल्कि संघ का वैचारिक केंद्रबिंदु राष्ट्र है। इसकी पहुँच देश के कोने-कोने तक है, जिसका प्रमाण इसके 50,000 से अधिक शाखाओं का विश्वभर में संचालन है। डॉ. हेडगेवार मानते थे कि भारतवर्ष का प्रत्येक बालक एक संभावित विवेकानंद या तिलक है। संघ प्रत्येक पुत्र और पुत्री में इस क्षमता को विकसित करने का प्रयास करता है। यह एक अत्यंत कठिन कार्य और क्रांतिकारी विचार था। लेखक का मानना है कि जिस संस्था के संस्थापक एवं अभिभावक एक समर्पित चिकित्सक और अध्यापक हो तो ऐसी संस्थाएं तो दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की तो करेंगे ही।
बीते 100 वर्षों की निरंतर यात्रा में, संघ से जुड़े लाखों पूर्व जैसे कि डॉ. केशव हेगडेवार, माधव गोलवलकर व वर्तमान स्वयंसेवकों जैसे कि सरसंघचालक श्री मोहन भागवत जी, तथा संघ के एक समर्पित स्वयंसेवक एवं देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व और समर्पण से संघ के पूर्वजों के विचार एवं सपने साकार हो रहे हैं।
वही इस संगठन की शताब्दी के इस अवसर पर लेखक अपनी कविता ‘विकसित भारतः ध्येय हमारा’ के माध्यम से सभी भारतीयों और प्रवासी भारतीयों से आह्वान करता है कि वे एक विकसित भारत (विकसित भारत) और अखंड भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।