
उत्तराखंड: 24 सितंबर. 2025, बुधवार को देहरादून । डॉ रवि शरण दीक्षित की कलम से… भारतीय ज्ञान परंपरा और उसके बोध को धरातल पर लाने में एकात्म मानव दर्शन महति भूमिका अदा करता है,पंडित दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन आज भी बहुत प्रासंगिक है
सैकड़ो वर्षों के विदेशी शासन के समाप्ति के साथ ही राजनीतिक रूप से स्वतंत्र चिंतन दिया परन्तु वैचारिक रूप से समाज को सशक्त करने के लिए आर्थिक, सामाजिकता में संपूर्णता हेतु पंडित दीनदयाल द्वारा एकात्म मानव दर्शन मार्ग प्रशस्त करता है इसमें भारत बोध, स्व की अवधारणा राष्ट्रीयता आर्थिक चिंतन सुशासन सामाजिक समरसता पर्यावरणीय चिंता तथा भौतिक विमर्श मूल आधार के रूप में मार्गदर्शक हैं
इस मानव दर्शन का मूल केंद्र मे स्व का चिंतन है जो राष्ट्रीय चिंतन चरित्र मे मनुष्य को सशक्त करता है इस सारगर्भि चिंतन का आधार व्यक्ति के मन, बुद्धि और आत्मा पर है यदि शरीर स्वस्थ है और मन और बुद्धि विकृत है तो नागरिक स्वास्थ्य नहीं होता है यदि आत्मा का विकास ना हो तो जीवन अधूरा है इसलिए विकास का अर्थ है की शरीर मन बुद्धि और आत्मा सभा सभी का उत्थान हो
समाज के उत्थान में स्व की गहन भूमिका है जो परिवारिकता और आत्मीयता में समाहित है और यही राष्ट्र के विकास का मूल आधार है और इसीलिए भारत भारतीय संस्कृति अपने मूल चिंतन वसुदेव कुटुंबकम भावना से आगे बढ़ रही हैं
वर्तमान प्रवेश में इस चिंतन का और प्रभावशाली रूप की आवश्यकता महसूस हो रही है जिसमें अंत्योदय आधारित अर्थनीति के महत्व को परिलक्षित किया गया है जिसका मूल लक्ष्य समाज के अंतिम व्यक्ति का उत्थान है
वैश्विक परिदृश्य में केंद्र सरकार द्वारा भी अर्थ नीति में स्वदेशी तथा स्व की भावना को प्रसारित किया जा रहा है जो आत्मनिर्भर भारत का मूल आधार बनेगा
डॉ रवि शरण दीक्षित