उत्तराखंडदेहरादूनशासन-प्रशासन

राज्यपाल ने किया ‘‘नशामुक्त उत्तराखण्ड’’ पर आधारित संगोष्ठी का शुभारंभ

उत्तराखण्ड : 07 दिसम्बर 2024 ,देहरादून। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने शनिवार को राजभवन प्रेक्षागृह में आयोजित ‘‘नशामुक्त उत्तराखण्ड’’ पर आधारित संगोष्ठी का शुभारंभ किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तराखण्ड की पुस्तक ‘‘तम्बाकू मुक्त शिक्षण संस्थान क्रियान्वयन निर्देशिका’’ का विमोचन भी किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि इस संगोष्ठी के माध्यम से जो संदेश युवाओं, उनके माता-पिता और गुरूजनों तक जाएगा, इसका एक बहुत बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने शासन-प्रशासन सहित इस मिशन से जुड़े संगठनों, स्वयंसेवकों, कार्यकर्ताओं व जागरूक नागरिकों का अभिनंदन करते हुए कहा कि नशामुक्त उत्तराखण्ड के इस अभियान में हम सभी को सक्रिय भूमिका निभानी है। राज्यपाल ने कहा कि सामान्यतः अपने बच्चे में नशे की लत का पता चलते ही हम ऐसी बातों को छुपाने की कोशिश करते हैं।

यह एक अलार्मिंग सिचुएशन है। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड एक एजुकेशन हब है। आजकल बच्चे बहुत छोटी आयु में नशे की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारी सबसे बड़ी चुनौती ड्रग्स है। कहा कि नशामुक्ति बहुत बड़ी चुनौति है। हमें इस समस्या के लिए समाधान ढूंडने होंगे। उन्होंने कहा हमारे राष्ट्र के सपने हैं कि हम विश्व गुरु बनना चाहते हैं, आत्मनिर्भर भारत बनना चाहते हैं, वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनना चाहते हैं, परन्तु बहुत सी ऐसी ताकतें हैं, जो हमें पूरी सिसिलाइजेशन को बर्बाद कर देता है। हमें ऐसी ताकतों से अपने युवाओं को बचाने के लिए पूरे समाज को जागना पड़ेगा। राज्यपाल ने कहा कि हमें यह समझना अति आवश्यक है कि यह बुराई पनपती कहां से है। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार वो लोग हैं जो इन नशीले पदार्थों को बनाते हैं, हमें उनकी जड़ों को समूल नष्ट करना है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप किस संगत में रह रहे हैं, किस माहौल में रहे हैं, आप कैसी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं।

इससे आपके जीवन की दिशा तय होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने अंदर कोई न कोई शौक पालना होगा, कोई जुनून पैदा करना होगा। ताकि हम ऐसी चीजों से दूर रह सकें। उन्होंने कहा कि नशा केवल व्यक्तिगत लत नहीं है बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विकास में अवरोध भी पैदा करता है। यह एक ऐसी बुराई है जो न केवल व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बर्बाद करती है, बल्कि समाज में अपराध और असामाजिक गतिविधियों को भी जन्म देती है। राज्यपाल ने कहा कि हम सभी को ड्रग्स, शराब, तंबाकू उत्पाद जैसे सभी प्रकार के नशे के विरुद्ध अपनी लड़ाई को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाना है तभी हम ‘‘नशामुक्त उत्तराखण्ड’’ के स्वप्न को साकार कर पाएंगे। हमें इस मिशन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए इस जन आंदोलन के प्रति लोगों को जागरूक करना है। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। यह मात्र एक विषय नहीं है बल्कि हमारे भविष्य को सुरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण अभियान है।

राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्र को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपनी युवा पीढ़ी को नशे से दूर रखने के लिए इस संगोष्ठी में प्रतिभाग कर रहे प्रत्येक व्यक्ति को नशा मुक्ति अभियान के ब्राण्ड अंबेसडर के रूप में कार्य करना होगा। उन्होंने कहा कि आज के इस अवसर पर हमें इस गंभीर विषय पर चिंतन और मनन करके बच्चों व युवाओं को सही मार्गदर्शन देना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा भारत को नशामुक्त बनाने के उद्देश्य से देश के सभी जिलों में ‘‘नशामुक्त अभियान’’ चलाया जा रहा है। इनके अलावा भी समाज में नशे को रोकने व इसके शिकार लोगों को इससे बाहर निकालने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। राज्यपाल ने सभी से अनुरोध किया कि अपने घरों, मोहल्लों और कार्यस्थलों पर लोगों के बीच नशे के दुष्प्रभावों के प्रति जागरूकता फैलाएं। युवाओं को इस बुराई से दूर रहने व अपने जीवन में कुछ बेहतर बनने के लिए प्रोत्साहित करें।

राज्यपाल ने कहा कि बुराइयों से दूर रहकर हमें अपने देश, प्रदेश व समाज के हित में की जा रही इस तरह की सकारात्मक पहल की ओर जाना चाहिए, जहां से हमारा भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। ताकि हमारे माता-पिता, शिक्षक और समाज हम पर गर्व कर सकें। राज्यपाल ने संगठनों व जागरूक नागरिकों को आश्वासन दिया कि ‘‘नशामुक्त उत्तराखण्ड’’ के इस अभियान को उनकी ओर से हर संभव मदद की जाएगी। कहा कि इस अभियान को सफल बनाना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। सचिव रविनाथ रमन ने बच्चों को नशे से दूर रखने के लिए 13, 14 वर्ष की आयु से ही बच्चों पर ध्यान देने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अभिभावकों को इसमें आगे आना होगा। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों में नशे के लक्षणों की पहचान करनी होगी। उन्होंने कहा कि स्कूलों में इसके लिए बाल सखा कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसमें बच्चों को घर से स्कूल और स्कूल से घर जाते समय समूहों में भेजा जाता है। इससे बच्चों में उनके संगी-साथी ही नजर रख सकते हैं। ताकि शुरुआती समय में ही बच्चों को गलत करने से रोका जा सके। उन्होंने कहा कि नशे की लत की जानकारी मिलने के बाद हमारे पास नशे की लत छुड़वाने के लिए पूरा मैकेनिज्म है। उन्होंने समाज की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि समाज को इसमें सक्रिय भूमिका निभाते हुुए अपने आसपास नशे के आदी हो चुके छात्र-छात्राओं को देखने के बाद उनके परिजनों, विद्यालयों आदि से जानकारी साझा करनी चाहिए। सचिव डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि बच्चों में नशे की लत से बचाने के लिए बच्चों और परिजनों में संवाद की अहम भूमिका है। साथ ही, इसमें शिक्षण संस्थानों को अपनी विशेष भूमिका निभानी होगी।

उन्होंने कहा कि शिक्षक को अपने छात्रों पर नजर रखनी होगी। संगोष्ठी के दौरान पैनालिस्ट श्री कुशल कोठियाल ने कहा कि उत्तराखण्ड का पर्वतीय और मैदानी दोनों ही क्षेत्रों में नशे के शिकार बढ़ते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसको रोकने के लिए हमें अल्पायु में ही बच्चों को जागरूक करना होगा। इसके लिए कक्षा 6 से ही बच्चों को नशे और इसके दुष्प्रभावों की जानकारी दिया जाना अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए। इसके साथ ही वर्ष में दो बार डोपिंग टेस्ट की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। डोपिंग टेस्ट के लिए जनपद स्तरीय कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए। शिक्षण संस्थानों द्वारा भी अपने स्तर पर इसके प्रयास किए जाने चाहिए, इसके लिए अभिभावकों को भी आगे आना होगा।

दून स्कूल के प्रधानाचार्य डॉ. जगमीत सिंह ने कहा कि बच्चों में नशे की लत के लिए उनकी संगत के अलावा उनका पारिवारिक माहौल भी जिम्मेदार होता है। उन्होंने कहा कि बच्चे अल्पायु में ही अपने माता-पिता, भाई-बहन द्वारा अपने आसपास के लोगों, रिश्तेदारों को देखकर बुरी आदतें सीखते हैं और उनका अनुसरण करते हैं। उन्होंने कार्यक्रम में आए छात्र-छात्राओं से कहा कि वे भारत का भविष्य हैं। आने वाले कल के नेता हैं। उन्हें अपने आपको इन सभी प्रकार के नशों से दूर रहना है। निरीक्षक एएनटीएफ श्री रविन्द्र यादव ने कहा कि प्रदेश में वर्तमान में 82 रिहेबिलिटेशन सेंटर हैं, 18 से 25 वर्ष की आयु के बच्चों से बात करने के बाद पता चला कि अधिकतर बच्चों को यह लत 13 से 15 साल की उम्र में लगी। उन्होंने कहा कि स्कूल में बच्चे ग्रुप में रहते हैं, अक्सर ऐसा होता है कि ग्रुप का लीडर यदि नशा करता है तो उनके संपर्क में आने वाले सभी नशे की जद में आने लगते हैं। ऐसे में हमें अपने बच्चों पर नजर बनाए रखना आवश्यक है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button