शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना के समय वास्तु के इन नियमों का करें पालन!
उत्तराखण्डः 02 अक्टूबर 2024, पूरे देश में शारदीय नवरात्रि भक्ति और उत्साह के साथ मनाई जाती है। बता दें कि यह हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। शारदीय नवरात्रि के मौके पर मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का पर्व कई अलग अनुष्ठानों का एक अहम हिस्सा है। नवरात्रि के मौके पर घरों में कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना नवरात्रि पूजन का सबसे पहला और अहम चरण होता है। यह अनुष्ठान दिव्य ऊर्जा के आह्वान का प्रतीक माना जाता है। कलश स्थापना से घर में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा आती है।
हालांकि कलश स्थापना के दौरान कई ज्योतिष और वास्तु से जुड़ी बातों का ध्यान रखा जाता है। जिससे कि व्यक्ति के घर-परिवार में खुशहाली बनी रहे। नवरात्रि के मौके पर सही स्थान और सही दिशा में कलश स्थापना करनी चाहिए। इस बार 03 अक्तूबर 2024 से शारदीय नवरात्रि की शुरूआत हो रही है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको शारदीय नवरात्रि के मौके पर कलश स्थापना के वास्तु टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं।
कलश स्थापना करते समय आपको कई ज्योतिष और वास्तु से जुड़ी बातों का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है, जिससे आपके जीवन में खुशहाली बनी रहे। सही स्थान और दिशा में कलश की स्थापना करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और समृद्धि आती है। इस साल शारदीय नवरात्रि का आरंभ 3 अक्टूबर, बृहस्पतिवार के दिन हो रहा है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कलश स्थापना के लिए वास्तु टिप्स के बारे में।
कलश स्थापना के लिए सही स्थान चुनें
वास्तु शास्त्र के मुताबिक शारदीय नवरात्रि के मौके पर घर में कलश स्थापना करनी चाहिए। यह घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बनाए रखता है। कलश की स्थापना हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा या फिर ईशान कोण में करनी चाहिए। इस दिशा को भगवान शिव की दिशा मानी जाती है और धार्मिक गतिविधि के लिए भी इस दिशा को आदर्श माना जाता है।
इस दिशा में कलश स्थापित करने से दैवीय आशीर्वाद आकर्षित होता है और घर में सुख-समृ्द्धि व शांति बनी रहती है। अगर आप उत्तर-पूर्व दिशा में कलश नहीं रख सकते हैं, तो आप पूर्व दिशा में भी कलश स्थापना कर सकते हैं। पूर्व दिशा उगते हुए सूरज की दिशा है। जो नई शुरूआत, आशा और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। दक्षिण दिशा में कलश की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
कलश की स्थापना का शुभ मुहूर्त
हमेशा शुभ मुहूर्त पर कलश स्थापना करनी चाहिए। जिससे आपको इसका पूरा लाभ मिल सके। किसी ज्योतिष या पंचांग से कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त जानें। आमतौर पर सुबह के समय कलश स्थापना की जाती है। कलश स्थापना से पहले पूजा स्थल को अच्छे से साफ कर लें। नवरात्रि के पहले दिन यानी की प्रतिपदा तिथि को कलश की स्थापना की जाती है।
किस धातु को हो कलश
नवरात्रि के अनुष्ठान के लिए तांबे या फिर पीतल के तांबे का इस्तेमाल करना चाहिए। हिंदू धर्म में इन धातुओं को पवित्र माना जाता है और यह पॉजिटिव ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए भी जाना जाता है। कलश की स्थापना के लिए लोहे, प्लास्टिक या फिर किसी अन्य कृत्रिम सामग्री के इस्तेमाल से बचना चाहिए। कलश के ताजे आम या फिर पान के पत्ते कलश के ऊपर रखें फिर नारियल रखें और उसमें लाल पवित्र कलावा बांधें। कलावा भी शुभता का प्रतीक होता है और आम के पत्ते पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
कलश पर स्वास्तिक चिन्ह
वास्तु शास्त्र के अनुसार, कलश स्थापना के दौरान उस पर स्वास्तिक चिन्ह बनाना न भूलें। स्वास्तिक चिन्ह को बेहद शुभ माना जाता है और यह प्राचीन और पवित्रता का प्रतीक है। जो समृद्धि, कल्याण और जीवन के शाश्वत चक्र का भी प्रतीक माना जाता है। इसे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति पर देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है।
कलश पर स्वास्तिक चिन्ह बनाने से यह दिव्य शक्ति से भर जाता है और शुभता का प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक बनाते समय ध्यान रखें कि इसको सही और सटीक तरीके से बनाएं। जिससे कि इसकी पूर्ण सकारात्मक ऊर्जा का लाभ मिले। यह स्वास्तिक का चिन्ह वास्तु दोषों को दूर करने में भी सहायक होता है।
कलश के पास अखंड ज्योत जलाएं
नवरात्रि पूजन में अखंड ज्योत को पूजन का एक अभिन्न अंग माना जाता है। वास्तु के मुताबिक पूजन स्थान के उत्तर पूर्व दिशा में कलश के पास अखंड ज्योति जलाई जाती है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। अखंड ज्योति को परमात्मा की उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है और यह व्यक्ति की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती हैं। अगर आप भी कलश के पास अखंड ज्योत जला रहे हैं, तो ज्योत को कलश के दाहिने ओर रखें। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि इसको ऐसे रखें कि इसकी लौ न बुझने पाए। क्योंकि नवरात्रि की अखंड ज्योत पूरे 9 दिनों तक जलती रहनी चाहिए।