उत्तराखंड

दिल्ली में केदारधाम पर छिड़ा राजनीतिक संग्राम

उत्तराखण्ड : 12 जुलाई 2024 ,देहरादून। दिल्ली में केदारनाथ धाम के लिए सीएम धामी ने भूमि पूजन करते समय भले ही धर्म और सनातन की अवधारणा को मजबूत बनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की शान में बहुत सारी बातें कही गई हो लेकिन अब देश में कहीं भी धामों की स्थापना को लेकर जो विवाद खड़ा हो गया है उस पर भाजपा और उसके नेताओं को कोई जवाब देते नहीं बन रहा है।

एक तरफ अब जहां राजनीतिक दलों के नेता सीएम धामी के इस काम को देवभूमि की संस्कृति का अपमान बता रहे हैं वहीं केदारनाथ धाम में तीर्थ पुरोहित, पुजारी और पंडा इसके विरोध में आंदोलन पर उतर आए हैं। उन्होंने सीएम को चेतावनी दी है कि वह अपना फैसला वापस ले नहीं तो आंदोलन और तेज किया जाएगा। उन्होंने इसे गढ़वाल के साथ भेदभाव भी बताया है। एक अन्य बात यह है कि जब सीएम धामी दिल्ली में भूमि पूजन कर रहे थे तब उनके साथ हरिद्वार के महामंडलेश्वर भी मौजूद थे जो धार्मिक मामलों के अच्छे जानकार हैं। उन्होंने भी सीएम को इस मामले में अपनी राय क्यों नहीं दी। अगर सीएम धामी को कुछ ऐसा करना ही था तो तीर्थ पुरोहित व बद्री केदार समिति को अपने विश्वास में लेना चाहिए था।

इस बाबत केदारनाथ धाम के रावल भीमाशंकर का साफ कहना है कि जो भी धाम जहां है सिर्फ वहीं धाम होगा अनियंत्रित किसी भी स्थान पर कोई भी धाम नहीं हो सकता है। उनका कहना है कि हिमालय के जिस केदार खंड में केदारनाथ धाम है वह केदार खंड में ही रहेगा दिल्ली में नहीं हो सकता है। दिल्ली में केदार धाम मंदिर के लिए भूमि पूजन किये जाने के विरोध में कांग्रेस नेता गणेश गोदयाल ने तो उपवास करते हुए यहां तक कहा है कि भाजपा धामों की फ्रेंचाइजी देकर उत्तराखंड के धामों का न सिर्फ मजाक बना रही है बल्कि देवभूमि की संस्कृति को कलंकित करने का काम कर रही है।
उधर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि भाजपा के नेताओं में धाम बनाने की होड़ लगी हुई है। जिसकी जहां मर्जी आया वहीं धाम बना दे उन्होंने कहा कि हम सैनिकों का सम्मान करते हैं लेकिन भाजपा सैन्य धाम के नाम पर राजनीति कर रही है 3 साल हो चुके हैं सैंन्य धाम के नाम पर भाजपा ने क्या किया है, प्रदेश की जनता देख रही है इस मुद्दे पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भटृ से भी कई तरह के सवाल किये जा रहे हैं। मुख्यमंत्री के भूमि पूजन को भी वह गलत नहीं ठहरा पा रहे हैं और न सही ठहरा पा रहे हैं।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के जिस धर्म के मुद्दे के सहारे भाजपा ने अपनी दो संसदीय सीट से सफर शुरू कर 282 तक पहुंचाया, इसी अयोध्या के मुद्दे ने उसे भले ही अयोध्या में औंधे मुंह पटक दिया हो लेकिन भाजपा को अभी भी लगता है कि धर्म और मंदिर—मस्जिद तथा हिंदू—मुस्लिम का मुद्दा ही एकमात्र उसका मुख्य राजनीतिक आधार है। वह धाम और मंदिर तथा मानस मंदिर कॉरिडोर के दम पर ही अपनी राजनीति चलाती रहेगी और उसे जन सरोकारों के मुद्दों की कोई जरूरत नहीं है।

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