उत्तराखण्ड : 10 अप्रैल 2024,देहरादून। सिद्धपीठ मां डाट काली मंदिर वर्षों से लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि मंदिर में शीश नवाने मात्र से ही मां डाट काली भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मंदिर में 102 साल से लगातार अखंड ज्योत जल रही है। दून के साथ ही कई राज्यों से भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं।
उत्तराखंड-यूपी बाॅर्डर पर मोहंड में स्थित सिद्धपीठ मां डाट काली मंदिर की स्थापना 220 साल पहले हुई थी। माना जाता है कि इससे पहले मंदिर आशारोड़ी के समीप एक जंगल में हुआ करता था। अंग्रेजों के समय सहारनपुर रोड पर टनल का निर्माण किया जा रहा था, लेकिन संस्था इसके निर्माण के लिए जितना खोदती थी उतना ही मलबा वहां दोबारा भर जाता था।
तब मां घाठेवाली ने महंत के पूर्वजों के सपने में आकर मंदिर को टनल के पास स्थापित करने की बात कही थी। इसके बाद मंदिर को 1804 में वहां से हटाकर टनल के पास स्थापित किया था। इसके बाद ही मंदिर का नाम मां डाट काली पड़ा था।
मंदिर के महंत रमन प्रसाद गोस्वामी बताते हैं कि मां डाट काली उत्तराखंड के साथ ही पश्चिम उत्तर प्रदेश की इष्ट देवी हैं। मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। शनिवार को मां डाटकाली को लाल फूल, नारियल और लाल चुनरी चढ़ाने का विशेष महत्व है। मंदिर में मां डाट काली के साथ ही हनुमान, गणेश सहित भगवानों की प्रतिमा भी स्थापित है।
नवरात्र में देशभर से लाखों की संख्या में भक्त मां डाट काली के दर्शन करने के लिए आते हैं। पहले दिन से ही मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से भक्तों की लाइन लग जाती है।
नया वाहन लेने पर भक्त मां डाट काली मंदिर में आकर दर्शन कर वाहन पर लाल चुनरी बंधवाते हैं। महंत बताते हैं कि मां डाट काली के दर्शन करने और चुनरी बंधवाने से मां भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी यात्रा मंगलमय होती है।
मां डाट काली के दर्शन के बाद उनकी बहन मां भद्रकाली के दर्शन किए जाते हैं। उनके दर्शन के बाद ही भक्तों की यात्रा पूर्ण मानी जाती है। मां भद्रकाली का मंदिर मां डाट काली मंदिर के पास स्थित टनल से सौ मीटर आगे स्थापित है।