उत्तराखंडदेहरादूनविविध

‘उत्तराखंड एकता मंच’ के बैनर तले उत्तराखंडी मूलनिवासियों ने किया जोरदार प्रदर्शन

उत्तराखण्ड : 23 दिसम्बर 2024 ,देहरादून। दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘उत्तराखंड एकता मंच’ के बैनर तले उत्तराखंडी मूलनिवासियों ने एकत्र होकर जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि इन क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों, रोजगार की कमी और अलाभकारी खेती के कारण व्यापक स्तर पर पलायन हो रहा है, जिससे हजारों गांव जनशून्य हो गए हैं।

उत्तराखंड एकता मंच के निशांत रौथाण ने बताया कि 1972 से पहले पहाड़ों में शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट 1874 लागू था, जो जनजातीय कानूनों के अंतर्गत आता था। पहाड़ों में 1935 में बहिष्कृत क्षेत्र घोषित किया गया था। आजादी के बाद देश के जिन इलाकों में यह कानून लागू था, उन इलाकों के मूलनिवासियों को जनजातीय दर्जा देकर 5वीं या 6वीं अनुसूची लागू की गई, लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र से ये अधिकार 1972 में छीन लिए गए। रौथाण का मानना है कि भारत सरकार द्वारा जनजातीय दर्जा देने के मानकों पर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के मूलनिवासी खरे उतरते हैं।

उत्तराखंड एकता मंच के देहरादून कॉर्डिनेटर अश्वनी मैंदोला ने बताया कि उत्तराखंड को छोड़कर सम्पूर्ण हिमालय के मूलनिवासियों को जनजाति का दर्जा मिला हुआ है। हिमाचल प्रदेश का 43% क्षेत्रफल 5वीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, जबकि उत्तराखंड इससे वंचित है।

इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत ने कहा कि शताब्दियों तक इस क्षेत्र में खसों का निवास था, जिसकी पुष्टि ऐतिहासिक तथ्यों, सरकारी दस्तावेजों और सांस्कृतिक परिवेश से होती है। आज भी पर्वतीय क्षेत्र के 90% लोग खस जनजाति की परंपराओं का पालन करते हैं।

महावीर राणा ने बताया कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र की संस्कृति प्रकृति पूजक आदिवासियों जैसी है। यहां के त्योहार, कला, लोक देवताओं का आह्वान, वनों पर आधारित खेती व पशुपालन आदि जनजातीय परंपरा को दर्शाते हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में फूलदेई, हरेला, खतड़ुआ, इगास बग्वाल, हलिया दसहरा, रम्माण, हिलजात्रा जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं जो आदिवासी संस्कृति की झलक दिखाते हैं। इसके अतिरिक्त कठपतिया, ऐपण कला, जादू-टोने पर विश्वास, लोक देवताओं का आह्वान, वनों पर आधारित खेती और पशुपालन की परंपराएं जनजातीय जीवनशैली को प्रतिबिंबित करती हैं।

उत्तराखंड एकता मंच के संयोजक अनूप बिष्ट ने कहा कि रोजगार की तलाश में शहरों की ओर जाने वाले अधिकांश पहाड़ी लोग अपने गांव वापस नहीं आ पाते, जिससे हजारों गांव निर्जन हो गए हैं। यदि पहाड़ में 5वीं अनुसूची लागू होती है, तो देश भर के शहरों में रह रहे पहाड़ी लोग रोजगार के साथ घर वापसी कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अभाव और अलाभकारी खेती के कारण लोग व्यापक स्तर पर पलायन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा 5वीं अनुसूची लागू करने से स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और लोग अपने मूल निवास की ओर लौटेंगे।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल गंभीर सिंह नेगी ने कहा कि उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है। इस दुर्गम क्षेत्र का जनविहीन होते जाना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक हो सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जनजातीय दर्जा देने से न केवल रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी।

प्रताप नगर के विधायक विक्रम नेगी ने कहा कि वे इस मुद्दे को प्राइवेट मेंबर बिल के माध्यम से उत्तराखंड विधानसभा के अगले सत्र में प्रस्तुत करेंगे। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की मांग को लेकर जनप्रतिनिधि पूरा समर्थन देंगे।

प्रदर्शन में हजारों उत्तराखंडी मूलनिवासियों ने उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को जनजातीय क्षेत्र घोषित कर संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया। वक्ताओं ने आशा व्यक्त की कि उत्तराखंड के जनप्रतिनिधि जल्द ही इस प्रस्ताव को विधानसभा में पारित करवाएंगे। प्रदर्शनकारियों ने आशा व्यक्त की कि राज्य सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी और उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को जनजातीय क्षेत्र घोषित करेगी। यह प्रदर्शन न केवल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के अधिकारों की मांग का प्रतीक था, बल्कि उन लोगों की आवाज भी थी जो अपने अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए एकजुट हो रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button