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सनातन धर्म में महाकुंभ का मेला आस्था और संस्कृति का प्रतीक

 उत्तराखण्ड : 05 दिसम्बर 2024 ,देहरादून। सनातन धर्म में महाकुंभ का मेला आस्था और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। हर 12 सालों में चार पवित्र स्थानों पर महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक हर साल पौष माह की पूर्णिमा तिथि को महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसदिन से शाही स्नान की भी शुरूआत होती है। बता दें कि इस बार साल 2025 में महाकुंभ मेला लगने जा रहा है। जिसको लेकर तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं महाकुंभ मेला अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और सिंहस्थ कुंभ से कितना अलग है। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको महाकुंभ मेला, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और सिंहस्थ कुंभ के बारे में बताने जा रहे हैं।

अर्धकुंभ का महत्व
अर्ध का आशय आधे से होता है। बता दें कि हरिद्वार और प्रयागराज में हर 6 सालों में कुंभ मेले के बीच अर्धकुंभ का आयोजन होता है। इसको छोटे स्तर का कुंभ का कहा जाता है।

पूर्णकुंभ का महत्व
वहीं पूर्णकुंभ हर 12 सालों में आयोजित होता है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 साल के बराबर होते हैं। इसी वजहसे 12 साल में पवित्र स्थल पर पूर्णकुंभ का आयोजन किया जाता है। हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में पूर्णकुंभ आयोजित किया जाता है।

सिंहस्थ कुंभ का महत्व
सिंहस्थ कुंभ विशेष रूप से उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सिंहस्थ कुंभ का संबंध सिंह राशि से होता है। जब देवगुरु बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं। तब इन जगहों पर सिंहस्थ कुंभ का आयोजन होता है।

महाकुंभ मेले का महत्व
बता दें कि केवल प्रयागराज में हर 144 वर्षों के अंतराल में महाकुंभ आयोजित होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कुल 12 में से 4 कुंभ का आयोजन धरती पर होता है और बाकी के 8 कुंभ का आयोजन देवलोक में किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह एक खास स्थिति में होते हैं। तब महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। ऐसे में 144 वर्षों में एक बार महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है। धार्मिक मान्यता है कि महाकुंभ में साक्षात देवता धरतीलोक पर शाही स्नान के लिए आते हैं। इसी वजह से महाकुंभ में शाही स्नान की महत्ता अधिक है।

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